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गोण्डा : स्थानीय पुलिस व वन विभाग के दरोगा की मिली मिलीभगत से हरियाली पर चल रहा ‘लापरवाही का आरा’

वन में वृक्षों का वास रहने दो, झील झरनों में सांस रहने दो। वृक्ष होते हैं, वस्त्र जंगल के, छीन मत ये लिबाज रहने दो। वृक्ष पर घोंसला है चिड़िया का, तोड़ मत ये निवास रहने दो…।

गोण्डा : हरियाली के सीने पर लापरवाहों का आरा चलने के बाद कवि के मुख से निकली यह पंक्तियां हरे पेड़ों की व्यथा को कहती है। कुछ ऐसी ही व्यथा जिलों के उन हजारों हरे पेड़ों की भी है, जो आए दिन लकड़कट्टों के आरों से गिराए जा रहे हैं। जिले में अवैध कटान तेजी से किया जा रहा, जिस पर न तो वन विभाग और न ही पुलिस प्रशासन ही अंकुश लगा पा रहा है।जंगल अब ठूंठ में तब्दील होते जा रहे हैं। आर्थिक लाभ के कारण जिले में पेड़ों का कटना बदस्तूर जारी है। पेड़ों के लगातार कटान से जहां एक ओर पक्षी गान तक शांत हो गया है, वहीं गौरैया के विलुप्त होने के बाद अब आम जीवों की भी बारी आ चुकी है, पर जिम्मेदार खामोश है। जानकारों की माने तो पेड़ों के अंधाधुंध कटान से वातावरण में प्रदूषण घुलता जा रहा है। यदि अब भी न चेते तो वह दिन दूर नहीं सांस लेने के लिए भी लोग आक्सीजन को तरसेंगे।’आप को बताने की बात नहीं गोण्डा जिले के मनकापुर, छपिया, मसकनवा, कूड़ासन, आदि क्षेत्र पेड़ कटान के मामले में कहीं आगे पहुंच गए है। मोतीगंज थाना क्षेत्र भी इसमें पीछे नहीं है। कहीं खाकी या वन रेंज अफसरों की मिली भगत से पेड़ों का कटान होता ही रहता है।मोतीगंज थाना क्षेत्र में बाग के बाग ही साफ हो गए, पर कार्रवाई के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ। अब वहां बाग के स्थान पर लकड़ी के ठूंठ ही बचे हैं और उस जमीन पर खेती किसानी होने लगी है।पेड़ों का कटान होने से सुनाई देने वाली चिड़ियों की चहचहाहट भी गायब होने लगी है। एक सरकारी सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 50 साल से ज्यादा पुराना शीशम का वृक्ष प्रतिवर्ष 1552 किलो व पीपल का पेड़ 2252 किलो कार्बन डाई आक्साइड का अवशोषण कर 1185 किलो व 1713 किलो आक्सीजन देकर वायुमंडल को शुद्ध करता है। हर वृक्ष 10-15 एयर कंडीशनर के बराबर प्राकृतिक शीतलता प्रदान करता है, इसलिए पता चलता है कि एक पेड़ कितनी राहत प्रदान कर रहा है। यदि पेड़ों की संख्या कम होती चली गई तो वह दिन दूर नहीं जब न वातावरण में कार्बन डाई आक्साइड रह जाएगी और न उसका शोधन करने को वृक्ष नहीं रह जाएंगे, इसलिए गंभीर परिणामों से बचने को लोगों को चाहिए कि पेड़ों को न कम होने दें।जिले में सरकारी एवं निजी क्षेत्र की बागवानी मिलाने के बाद भी हरियाली का क्षेत्रफल 6 लाख हेक्टेयर का तीन प्रतिशत से भी कम है। पिछले कई दशकाें से हर साल वन विभाग द्वारा करोड़ों रुपये पौधरोपण पर खर्च किए जाते हैं, पर जिले में वन विभाग का हरियाली क्षेत्र महज कुछ ही में  हेक्टेयर है। वैसे तो जिले में बहुत कम  आरा मशीनें पंजीकृत है, पर इससे कहीं ज्यादा संख्या में अवैध आरा मशीनें चल रही हैं। उधर दिनारा बनकट में 38 पेड़ सागौन के खड़े पेड़ों का परमिट ना लेकर कटवा लिया। वहीं थाना क्षेत्र में वनकर्मी भी अवैध कटान कराने में बढ़ चढ़कर मदद करते हैं, उधर, वन दरोगा कन्हैया सिंह से जब 38 पेड़ सागौन के काटे जाने के संबंध में दूरभाष पर जब जानकारी ली गई तब वन दरोगा ने दूरभाष पर बताया कि हमें अभी पेड़ों के कटान की जानकारी हुई, यदि मामला सही मिला, तो लकड़ी के ठेकेदारों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। लेकिन सवाल बड़ा  है कि 48 घंटे बीत जाने के बाद भी ना तो या वन दरोगा कन्हैया सिंह का मोबाइल फोन उठता है और ना ही वन माफिया पर कार्रवाई होती है, कई थाना क्षेत्रों में वन विभाग व पुलिस की मिली भगत से प्रतिबंधित प्रजातियों आम, नीम, शीशम पर बेखौफ हो कुल्हाड़ा चलाया जा रहा है।घने से घने बाग को भी लकड़कट्टों द्वारा उजाड़े जा चुके हैं

        क्यों नहीं रुक पा रहा है पेड़ों का कटान

मोतीगंज थाना क्षेत्र  रामनगर, राजगढ़, सिसवरिया, गप्पीगंज चौराहा, मोतीगंज, कहोबा, वीरेपुर,आदि इलाके तो पेड़ों की कटान के लिए प्रचलित रहे हैं। इसके अलावा दिनारा बनकट, सीहागांव,पाण्डेय बजार,आदि क्षेत्रों में पेड़ों का कटान लगातार जारी है। शिकायतों के बाद भी पुलिस व वन विभाग के अधिकारी कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं। लोगों का आरोप है कि पेड़ों के कटान में पुलिस व वन विभाग के अफसरों की मिली भगत रहती है, जिसके बाद ही कटान पर रोक नहीं लग पा रही है।

   दस पेड़ लगाने की अनिवार्यता पर चली आरी

एक प्रावधान किया गया था कि जब कोई व्यक्ति किसी पेड़ को काटने को परमिट को आवेदन करेगा तो परमिट जारी करते समय उस व्यक्ति से दस पेड़ लगाने की शर्त को पूरा कराने को दस पेड़ों को लगाने को एक हजार रुपये की एनएससी भी वन विभाग जमा कराएगा तथा इन एनएससी को उस व्यक्ति को तब लौटाया जाएगा जब उसके द्वारा लगाए गए पौधे पूरी तरह से पेड़ बन जाएंगे, पर इस प्रावधान पर भी आरी चल गई है।

      पेड़ बनने से पहले मर जाते हैं हजारों पौधेे

पौधे लगाने के बाद उनके रख रखाव में उदासीनता से हर साल हजारों पौधे वृक्ष बनने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। ठीक देखभाल न होने से दस फीसदी से ज्यादा पौधे वृक्ष बनने से पहले ही दम तोड़ जाते हैं।

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