
हर महीने दो से तीन दिन गाय-भैंसों के बीच रहना पड़ता है। खाना-पीना-सोना सब कुछ वहीं। रातभर मच्छर काटते हैं, ऊपर से गोबर की बदबू। कपड़े से नाक दबाए, दम घुटने लगता है। रात-बेरात वॉशरूम जाना पड़े तो अलग मुसीबत, उसी गोबर पर पैर रखकर खेत में जाना पड़ता है।
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की जाणा गांव की ऐलू देवी इतनी सहजता से ये सारी बातें कहती हैं कि मैं सोच में पड़ जाती हूं। एक तरह महिलाओं को लेकर सरकारें बड़े-बड़े दावे करती हैं। दूसरी तरफ ऐलू देवी की तरह अनगिनत महिलाओं को अपने सबसे मुश्किल दिनों यानी पीरियड्स के दौरान घर से बाहर गाय-भैंसों के कमरे में, झोपड़ी में या अलग कमरे में रहना होता है। यहां के लोग इसे बाहर बैठना कहते हैं।
फिलहाल हिमाचल प्रदेश में वोटिंग हो चुकी है। 8 दिसंबर को फैसला भी आ जाएगा, लेकिन सदियों से दंश झेल रही इन महिलाओं की स्याह जिंदगी में कब उजाला होगा, कहना मुश्किल है।
इन्हीं महिलाओं का हाल जानने मैं दिल्ली से तकरीबन 550 किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू पहुंची।